जादुई जंगल का रहस्य (Jadui Jungle Ka Rahasya Story in Hindi)
मोहन बारह साल का था, पतला-दुबला, लेकिन आँखों में एक चमक और दिल में ढेर सारी जिज्ञासा लिए हुए। उसकी माँ हमेशा कहती, "मोहन, जंगल से दूर रहना। वहाँ कुछ ठीक नहीं है।" पर मोहन को तो ठीक वही ठीक लगता था जो माँ को गलत लगता था। उस दिन, जब गाँव में सब अपने घरों में थे, मोहन ने एक छोटा सा थैला उठाया, उसमें दो रोटियाँ और एक मटकी पानी डाला, और चुपके से जंगल की ओर निकल पड़ा।
जंगल में कदम रखते ही हवा में कुछ अजीब सा एहसास हुआ। पेड़ों की पत्तियाँ सरसराने लगीं, जैसे कोई उससे बात करना चाहता हो। मोहन ने एक गहरी साँस ली और आगे बढ़ा। थोड़ी दूर चलते ही उसे एक छोटा सा गिलहरी दिखा, लेकिन ये कोई आम गिलहरी नहीं थी। इसके कान चमक रहे थे, जैसे उनमें हीरे जड़े हों।
"अरे, तुम कौन हो?" मोहन ने हैरानी से पूछा।
गिलहरी ने पलटकर देखा और बोल पड़ी, "मैं चमकी हूँ, इस जंगल की रखवाली करती हूँ। तुम यहाँ क्या करने आए हो, छोटे इंसान?"
मोहन की आँखें फटी की फटी रह गईं। "त...तुम बोल सकती हो?"
"हाँ, और तुम सुन सकते हो। अब जल्दी बता, क्या चाहिए? यहाँ बिना वजह घूमना खतरनाक है," चमकी ने थोड़ा सख्त लहजे में कहा।
मोहन ने हिम्मत जुटाई और बोला, "मैं जादुई जंगल का रहस्य जानना चाहता हूँ। क्या सच में यहाँ खजाना है?"
चमकी हँसी, उसकी हँसी में शरारत थी। "खजाना? हाँ, है। पर उसे पाने के लिए तीन पहेलियाँ सुलझानी पड़ती हैं। तैयार हो?"
मोहन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने हाँ में सिर हिलाया। चमकी ने पहली पहेली सुनाई: "वो क्या है जो दिन में सोता है और रात में जागता है?"
मोहन ने थोड़ा सोचा और बोला, "उल्लू!"
"शाबाश!" चमकी ने ताली बजाई।
दूसरी पहेली थी: "मैं हवा में उड़ता हूँ, पर मेरे पंख नहीं। मैं हूँ कौन?"
मोहन ने अपने थैले को देखा और मुस्कुराया, "पतंग!"
"वाह, तुम तो तेज हो," चमकी ने कहा।
तीसरी पहेली थोड़ी मुश्किल थी: "मैं हर जगह हूँ, पर मुझे पकड़ नहीं सकते। मैं हूँ कौन?"
मोहन ने चारों ओर देखा—पेड़, पत्तियाँ, हवा। अचानक उसे ख्याल आया, "हवा!"
"बिल्कुल सही!" चमकी चिल्लाई।
अचानक, जंगल में एक तेज रोशनी फैली। सामने एक पुराना पेड़ था, जिसकी जड़ों के नीचे से एक सोने का बक्सा निकला। मोहन दौड़कर उसके पास गया और ढक्कन खोला। अंदर सोने-चाँदी के सिक्के नहीं थे, बल्कि ढेर सारी चमकती हुई किताबें थीं। हर किताब में जंगल की कहानियाँ लिखी थीं—जादुई जानवरों की, पेड़ों की, और यहाँ तक कि चमकी की भी।
"ये क्या है?" मोहन ने हैरानी से पूछा।
"ये जंगल का असली खजाना है—ज्ञान और कहानियाँ। इन्हें ले जाओ, और अपने गाँव में बाँटो," चमकी ने मुस्कुराते हुए कहा।
मोहन ने किताबें थैले में डालीं और वापस लौट आया। गाँव में उसने सबको कहानी सुनाई। किसी को यकीन नहीं हुआ, पर जब बच्चों ने किताबें पढ़ीं, तो उनकी आँखों में वही चमक आ गई जो मोहन की आँखों में थी। जंगल का रहस्य अब रहस्य नहीं रहा—वो सबके दिलों में बस गया।
और हाँ, चमकी? वो आज भी जंगल में नन्हे साहसियों का इंतजार करती है।

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